22 जून 1939 से शुरू हुआ फॉरवर्ड ब्लॉक का सफर
नेताजी सुभाष चंद्र बोस पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में थे और पार्टी के अध्यक्ष थे। 29 अप्रैल 1939 को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने कांग्रेस के अंदर ही 3 मई 1939 को फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया था। कुछ दिनों बाद ही वे कांग्रेस से अलग हो गए और 22 जून 1939 को पार्टी ने अपनी यात्रा की शुरुआत की और इसके पहले अध्यक्ष खुद नेता जी बने। एसएस चावेश्वर को उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। पार्टी के गठन के बाद कलकत्ता और मुंबई में जुलूस निकाला गया। तब पार्टी का झंडा अलग था। इसके बाद वामपंथी पार्टियों से मिलने के बाद झंडा बदला। अब इसमें एक बार फिर बदलाव होने जा रहा।
फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना के कुछ दिन बाद ही सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस से ही निकाल दिया गया। 22 जून 1939 को ही फॉरवर्ड ब्लॉक का पहला अधिवेशन नागपुर में आयोजित किया गया और इसमें फॉरवर्ड ब्लॉक को एक सोशलिस्ट पार्टी घोषित किया गया। इसी दिन फॉरवर्ड ब्लॉक का आधिकारिक स्थापना दिवस भी तय किया गया। अधिवेशन में फॉरवर्ड ब्लॉक ने अपना नारा दिया – “All Power to the Indian People” फॉरवर्ड ब्लॉक के झंडे में एक बाघ के साथ वामपंथी चिन्ह भी था, जिसका सीधा संदेश सभी वामपंथी दलों को एक झंडे के नीचे एकत्रित करना था जो नेता जी भी चाहते थे।
पहले अधिवेशन में तय हुआ कि सत्ता के मोह में कांग्रेस द्वारा किए गए भ्रष्टाचार को खत्म करना है। धीरे-धीरे पार्टी की लोकप्रियता देशभर में फैल गई। आगे चलकर पार्टी ने फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से एक साप्ताहिक पत्रिका भी शुरू की जिसके माध्यम से पार्टी की नीतियों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की कोशिश हुई। अंग्रेजों ने पार्टी की रैलियों को अनुमति देनी बंद कर दी। पार्टी के सदस्यों को गिरफ्तार किया जााने लगा। बोस ने कई बार जेल में अनशन भी किया।पार्टी कुछ दिनों बाद माकपा के साथ चली गई और वाम मोर्चे का एक घटक बना गया।
चुनाव लड़ा और जीता
20 फरवरी को, 1971 के आम चुनावों से ठीक पहले, अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक के अध्यक्ष हेमंत कुमार बोस की कलकत्ता में हत्या कर दी गई थी। 24 फरवरी को एक आपातकालीन केंद्रीय समिति की बैठक हुई, जिसने पीके मुकिया थेवर को पार्टी का नया अध्यक्ष नियुक्त किया।
1971 के लोकसभा चुनाव में फॉरवर्ड ब्लॉक ने देश भर में 24 उम्मीदवारों को उतारा। दो निर्वाचित हुए, रामंतपुरम से पीके मुकिया थेवर और नागपुर से जम्बुवंतराव धोटे। पार्टी ने महाराष्ट्र के अंदरूनी इलाकों में 3 सीटों पर चुनाव लड़ा , जहां उसने अच्छा प्रदर्शन किया। धोटे जो उस समय विदर्भ का शेर ( विदर्भ का शेर ) के रूप में जाने जाते थे, फॉरवर्ड ब्लॉक में शामिल हो गए थे और उन्होंने अपने मंच के रूप में फॉरवर्ड ब्लॉक के साथ एक अलग विदर्भ राज्य के लिए अभियान चलाया था। धोटे उस समय इस क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय थे।
1971 के ओडिशा विधानसभा चुनाव में पार्टी ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा था। लेकिन कोई भी सीट नहीं जीत सकी। तमिलनाडु में पार्टी ने प्रगतिशील मोर्चे के ढांचे के भीतर राज्य के दक्षिणी हिस्से में 9 सीटों पर चुनाव लड़ा। इन नौ उम्मीदवारों में से सात जीते। एक उम्मीदवार दूसरे नंबर पर था। 1972 का चुनाव अकेले लड़ने के बाद फॉरवर्ड ब्लॉक ने त्रिपुरा में कम्युनिस्ट पार्टियों के नेतृत्व वाले ‘संयुक्त मोर्चा’ में शामिल होने का फैसला किया।
1977 भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण वर्ष था। स्वतंत्र भारत में पहली बार कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रीय चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। फॉरवर्ड ब्लॉक ने लोकसभा चुनाव में चार सीटों पर चुनाव लड़ा था। पश्चिम बंगाल में इसके तीन उम्मीदवार थे जिन्हें वाम मोर्चा का समर्थन था। तीनों उम्मीदवार चुनाव जीते।
लेकिन अब फॉरवर्ड ब्लॉक अपनी पहचान खो रहा। 2004 के 0.35 मत प्रतिशत से गिरकर 2019 के लोकसभा चुनाव में 0.05 फीसदी पर आ गया। बंगाल तो इसकी स्थिति और खराब है। 2011 में पार्टी को लगभग 5 फीसदी मत मिले जो 2021 विधानसभा चुनाव में 0.53 फीसदी पर आ गया। इस समय पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों में एआईएफबी के पंचायत सदस्य हैं।
अब पार्टी से हट रहा वामपंथ का लाल रंग और हसुआ-हथौड़ा
लंबे अरसे बाद फॉरवर्ड ब्लॉक का झंडा बदल रहा है। झंडे से हसुआ और हथौड़ा हटने जा रहा है। पार्टी अब अब अपना पुराना झंडा वापस लाने जा रही है जिसे नेजाती सुभाष चंद्र बोस ने नागपुर में फहराया था। झंडे से लाल रंग भी हट रहा। पुराने झंडे में केसरिया, सफेद हरा रंगा था। सफेद रंग में बाघ की तस्वीर थी। नया झंडा पार्टी की स्थापना दिवस 22 जून को फहराया जाएगा। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं कहना है कि झंडे का नया रूप पार्टी की छवि में बदलाव के लिए है। ये भारतीय संदर्भ में भारतीय समाजवाद पर ध्यान केंद्रित है।