कांग्रेस का इतिहास-35
समझौता और गोलमेज सम्मेलन के लिए गांधीजी की यात्रा
गोलमेज परिषद बैठक के लिए लंदन नहीं जाने के अपने फ़ैसले पर महात्मा गांधी ने सरल शब्दों में अपनी बात रखी थी-
यदि सरकार और कांग्रेस में कोई समझौता हुआ था और यदि उसके आशय के बारे में कोई विवाद उठ खड़ा हुआ या किसी पक्ष की ओर से उसका उल्लंघन किया गया; तो मेरी सम्मति में सब समझौतों के साथ लागू होने वाले नियम इस समझौते पर भी लागू होने चाहिए।
इस समझौते पर तो वे और भी ज्यादा इसलिए लागू होने चाहिए, क्योंकि यह समझौता एक महान सरकार और सारे देश के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली महान संस्था के बीच हुआ है। यह बात सही है कि इस समझौते पर क़ानून से अमल नहीं कराया जा सकता, पर इसलिए सरकार पर यह दोहरी जिम्मेदारी आ जाती है कि समझौता करने वाले दो समुदाय जिन प्रश्नों पर एक नहीं हो सकते उन्हें एक निष्पक्ष न्यायालय के सामने पेश करे।
कांग्रेस की एक बहुत सरल और स्वाभाविक इस सलाह को सरकार ने ठुकरा देने लायक़ समझा है कि झगड़े के ऐसे मामले निष्पक्ष न्यायालय को सौंप देने चाहिए।
लेकिन गांधीजी ने शान्ति के लिए कभी दरवाज़ा बन्द नहीं किया। वे तो कहते थे कि ज्यों ही रास्ता साफ़ हुआ, यदि प्रान्तीय सरकारें समझौते की शर्तो की पूर्ति करती रहें, मैं लन्दन की राह पर दौड़ पडूंगा।
गांधीजी आवश्यक और अनावश्यक का भेद जानते थे। उन्हें यह विश्वास हो गया था कि सिविल-सर्विस के कर्मचारी भारत के पूरी स्वतंत्रता के अधिकार को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। इसलिए गांधीजी कहते थे, जब तक इस सर्विस के सब कर्मचारियों के विचार न बदल जाये, पूर्ण स्वाधीनता के लिए कांग्रेस के सन्धि चर्चा करने की कोई सूरत नहीं है।
कांग्रेस को अभी और कष्ट-सहन व बलिदान में से गुज़रना होगा, चाहे इस तरीक़े का कितना ही अधिक मूल्य क्यों न चुकाना पड़े। इसलिए मैं तो अपने लिए बारडोली को ही खरी कसौटी मानता हूँ। जनता की नब्ज़ देखने के लिए ही इसकी योजना की गई थी। इस दृष्टि से देखने पर यह कोई छोटी बात न थी।
गांधीजी ने शिमला से 14 अगस्त के तार से अधिकार पाकर सरकार के विरुद्ध आरोप-सूची को प्रकाशित कर दिया था। कुछ लोगों ने समझा कि गांधीजी ने इसे प्रकाशित कर सरकार को चुनौती दी है। सप्रू और जयकर ने मुलतान जहाज से इसी आशय का तार दिया और बताया कि आरोप-सूची के प्रकाशन ने वाइसराय व भारतमंत्री के साथ संधि चर्चा में उन्हें परेशानी में डाल दिया है।
वाइसराय से मुलाक़ात और समझौता
गांधीजी, सरदार पटेल, जवाहरलालजी और प्रभाशंकरजी पट्टनी वाइसराय से मिले और कार्यकारिणी की बैठक की।
आखिर बहुत-सी बाधाओं के बाद मामले किसी तरह सुलझाये गये और गांधीजी शिमला के स्पेशल-ट्रेन द्वारा उस गाड़ी को पकड़ने के लिए रवाना हुए जो उन्हें 21 अगस्त को गोलमेज कान्फ्रेंस रवाना होने वाले जहाज पर सवार करा सके।
भारत सरकार ने एक सरकारी विज्ञप्ति में इस समझौते को प्रकाशित कर दिया। इसके साथ ही गांधीजी का भारत-सरकार के होम सेक्रेटरी इमर्सन के साथ जो पत्र-व्यवहार हुआ था, वह भी प्रकाशित कर दिया; क्योंकि पत्र भी समझौते के मूलभूत अंग थे।
गांधीजी लन्दन को चल पड़े, लेकिन असाधारण आशावादी होते हुए भी उन्हें सफलता की उम्मीद न थी। फिर भी उन्होंने उम्मीद की थी कि प्रान्तीय सरकारें सिविल सर्विसवाले और अंग्रेज व्यापारिक कम्पनियाँ कांग्रेस की उद्देश्य पूर्ति में सहायक होंगी।
कार्यसमिति ने 11 सितम्बर 1931 को अहमदाबाद में गांधीजी व राष्ट्रपति के शिमला में सरकार के साथ किये गये नये समझौते में पड़ने की कार्यवाही का समर्थन किया।
लंदन की राह
गांधीजी के साथ महादेव देसाई, देवदास गांधी, प्यारेलाल और मीराबहन थी। सरोजनी नायडू भी उनके साथ थीं। अदन में उनका हार्दिक स्वागत हुआ, जहाँ अरबों व भारतीयों ने कुछ दिक़्क़तों के बाद उन्हें एक साथ अभिनन्दन पत्र दिया।
रेजिडेन्ट सभा में राष्ट्रीय झंडा फहराने नहीं देना चाहता था और उन बेचारों की ही क्या हिम्मत थी कि वे इस पर आग्रह करते। तब गांधीजी ने स्वयं इस गुत्थी सुलझाई और उन्होंने स्वागत समिति के अध्यक्ष श्री फरामरोज कावसजी को यह सुझाया कि वह रेजिडेन्ट को फोन कर यह कहें कि इन परिस्थितियों में गांधीजी अभिनन्दन पत्र लेना स्वीकृत नहीं करेंगे, कांग्रेस और भारत सरकार में अस्थायी संधि हो चुकी है, सरकार को केवल इसी कारण झण्डे पर आपत्ति नहीं करनी चाहिए।
यह दलील काम कर गई और रेजिडेन्ट ने जहाँ गांधीको मानपत्र देना था उस स्थान पर भारत का राष्ट्रीय झंडा फहराने की अनुमति देकर विषय स्थिति को संभाल लिया।
मुस्तफ़ा अल-नहस पाशा का संदेश
गांधीजी को मिश्र की आज़ादी के लिए संघर्षरत उदारवादी वफ्द पार्टी के अध्यक्ष मुस्तफ़ा अल-नहस पाशा और श्रीमती जगलुल पाशा ने बधाई और एक संदेश भेजा-
अपनी स्वाधीनता के लिए लड़ते हुए देश के नाम पर मैं उसी स्वाधीनता के लिए लड़नेवाले भारत के सर्वप्रधान नेता का स्वागत करता हूँ।
मेरी हार्दिक कामना है कि आपकी यह यात्रा सकुशल समाप्त हो और आप प्रसन्नतापूर्वक लौंटे। मेरी ईश्वर से भी प्रार्थना करता हूँ कि आप जब वहाँ से लौटकर स्वदेश जाने लगेंगे, तब मुझे आपसे मिलने की खुशी हासिल होगी।
ईश्वर आपको चिरायु करे और आपके प्रयत्नों में आपको व्यापक तथा स्थायी विजय दे।
बहुत परेशानियों के बाद नहस पाशा का एक प्रतिनिधि गांधीजी मिलकर यह संदेश दे सका।
मैडलीन रोलां से मुलाक़ात
गांधीजी जब मार्सेलीज पहुँचे, रोम्याँ रोलां की बहन मैडलीन रोलां ने उनका उत्साह-पूर्वक स्वागत करने के लिए प्रतीक्षा कर रही थी। बाद में उनकी मुलाक़ात रोम्याँ रोलां से भी हुई थी।
कितने ही फ्रांसीसी विद्यार्थियों ने गांधीजी का अभिनंदन किया।
लंदन में मुरिएल लेस्टर के अतिथि गांधीजी
गांधीजी लन्दन के ईस्ट-एन्डवाले सार्वजनिक गृहों तथा गरीबों के मैले घरों के बीच मिस मुरिएल लेस्टर के यहाँ किंग्सले हॉल में ठहरे थे।
एक मित्र ने एक दिन यूस्टन रोड पर स्थित मित्र सभा भवन में दिये गांधीजी के भाषण व किंग्सले हॉल से न्यूयार्क को ब्रॉडकास्ट (रेडियो) द्वारा भेजे गये संदेश की रिपोर्ट टाइम्स में पढ़कर उनके खर्च के लिए 70 पौंड का चेक ही भेज दिया था।
मुरिएल लेस्टर (Murial Lyster) इस पूरी यात्रा में उनके साथ रहीं, अपने संस्मरणों की उन्होंने एक सुंदर किताब लिखी है – Entertaining Gandhi, जो सभी को पढ़नी चाहिए।
यह किताब अंग्रेज़ी में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है-
indianculture.gov.in/ebooks/enterta…
हिन्दी में श्री नंदकिशोर आचार्य ने इसका अनुवाद किया है और यह राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई है जिसे kopykitab.com/Gandhi-Ki-Mezb… से प्राप्त किया जा सकता है।
अगली कड़ी में हम गांधीजी के गोलमेज सम्मेलन के दौरान किए हस्तक्षेपों के बारे में विस्तार से बात करेंगे।